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सीएसीपी ने पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध और अन्य दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश की

वर्तमान में भारत दालों की खपत पूरी करने के लिए आयात पर निर्भर है। दालों के आयात से कई चुनौती भी सामने आती हैं। सस्ती आयातित दालें घरेलू कीमतों पर असर डालती हैं, जिससे किसान की आय पर भी प्रभाव पड़ता है। इस कारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।

Government 29 May
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भारत दालों की खपत पूरी करने के लिए आज भी काफी हद तक आयात पर निर्भर है, लेकिन सस्ती आयातित दालें घरेलू कीमतों पर दबाव डालती हैं और किसानों की आय को प्रभावित करती हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। साथ ही, अरहर, मसूर और उड़द जैसी प्रमुख दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने का सुझाव भी दिया गया है, ताकि किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल सके।

सीएसीपी की ये सिफारिशें खरीफ विपणन सत्र 2025-26 के लिए की गई गैर-मूल्य नीति अनुशंसाओं का हिस्सा हैं। आयोग का मानना है कि किसानों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित कर आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। सरकार ने आयोग की एमएसपी बढ़ाने की एक सिफारिश को पहले ही मंजूरी दे दी है, जिसके तहत खरीफ फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 1% से 13.9% तक की वृद्धि की गई है।

सीएसीपी के अनुसार, 2024-25 के खरीफ विपणन सत्र में बिना आयात शुल्क पर आयातित दालों और खाद्य तेलों की वजह से सोयाबीन, मूंगफली, उड़द, मूंग और अरहर की घरेलू कीमतें एमएसपी से नीचे आ गईं। आयोग ने सुझाव दिया है कि दालों और तिलहनों की MSP को आयात शुल्क ढांचे के अनुरूप लाना जरूरी है, ताकि किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल सके और वे इन फसलों की खेती के लिए प्रेरित हों।

दिसंबर 2023 में सरकार ने घरेलू उत्पादन में कमी के चलते पीली मटर के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी थी, जिसके बाद भारत ने अप्रैल 2025 तक 33 लाख टन से अधिक पीली मटर का आयात किया। यह छूट 31 मई 2025 तक लागू है। साथ ही, तुअर और उड़द के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति मार्च 2026 तक दी गई है। लेकिन उद्योग जगत का मानना है कि सस्ती पीली मटर के भारी आयात से चना दाल जैसी अन्य दालों की मांग पर असर पड़ा है।

इस मुद्दे को देखते हुए इंडियन पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन ने हाल ही में सरकार से पीली मटर के आयात पर 50% शुल्क लगाने की मांग की है। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान देश का दालों का आयात 68 लाख टन तक पहुंच गया है, जिसकी लागत करीब 5.4 बिलियन डॉलर आंकी गई है।

सीएसीपी ने दीर्घकालिक समाधान के रूप में दलहन और तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक रणनीतिक विविधीकरण की भी सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भरता और उत्तर-पश्चिमी भारत में जलवायु स्थिरता से जुड़ी चुनौतियों के चलते अब दालों और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए रणनीतिक बदलाव की आवश्यकता है।

पिछले कुछ वर्षों में आयोग ने दलहन, तिलहन और श्री अन्न जैसी फसलों के पक्ष में मूल्य प्रोत्साहनों का पुनर्गठन कर किसानों को फसल विविधीकरण और आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। हालांकि, इन फसलों की प्रति हेक्टेयर उपज अभी भी तुलनात्मक रूप से कम है, जिससे इनकी प्रतिस्पर्धी फसलों के मुकाबले लाभप्रदता घट जाती है। इसलिए, सीएसीपी का सुझाव है कि तकनीकी नवाचारों के साथ-साथ मूल्य समर्थन पर भी विशेष ध्यान देते हुए एक व्यापक कार्य योजना तैयार की जाए, जिससे किसानों को स्थायी लाभ मिल सके और भारत दालों व तिलहनों में आत्मनिर्भर बन सके।

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