नई दिल्ली: संसद की कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी स्थायी समिति को सरकार ने जानकारी दी है कि बीते एक दशक (2014-25) में देश में दालों और खाद्य तेलों का उत्पादन पिछले दशक की तुलना में कहीं तेज़ी से बढ़ा है। इसके बावजूद भारत अब भी खाद्य तेलों की घरेलू मांग का 56% हिस्सा आयात से पूरा कर रहा है, जिससे हर साल ₹80,000 करोड़ से ज़्यादा का विदेशी मुद्रा खर्च हो रहा है।
20 जून को हुई समिति की बैठक में कृषि मंत्रालय ने प्रस्तुति देते हुए बताया कि 2023-24 में भारत ने 15.66 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) खाद्य तेल आयात किया, जो घरेलू मांग का 56% है। विशेष रूप से पाम ऑयल के लिए देश पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, जिससे सांसदों ने इसके स्वास्थ्य जोखिमों पर भी चिंता जताई।
उत्पादन में तेज़ी लेकिन चुनौतियां बरकरार
मंत्रालय के मुताबिक, 2014-15 से 2024-25 के बीच तिलहन उत्पादन में 55% की बढ़ोतरी हुई है और तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2024 में इसका उत्पादन 426.09 लाख टन रहा। जबकि 2004-05 से 2014-15 के बीच यह वृद्धि केवल 13% रही थी।
इसी तरह, दालों के उत्पादन में भी 2014-25 के बीच 47% की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि 2004-14 के बीच यह बढ़ोतरी 31% रही थी। हालांकि, मंत्रालय ने यह भी स्वीकार किया कि दालों की 75% खेती अब भी वर्षा पर आधारित और कम उपजाऊ भूमि पर छोटे किसानों द्वारा की जाती है।
स्वदेशी प्रयास और 2030-31 तक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य
सरकार ने 2030-31 तक दाल और तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। इस साल के बजट में इसके लिए विशेष योजनाएं पेश की गई हैं। वहीं, सांसदों ने सुझाव दिया कि धान और गेहूं की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित कर दालों और तिलहन की खेती की ओर मोड़ा जाए।
मांग-आपूर्ति की मौजूदा स्थिति
मंत्रालय की प्रस्तुति के अनुसार, सरसों और मूंगफली तेल की घरेलू मांग भारत स्वयं पूरा कर लेता है। लेकिन सूरजमुखी तेल की 3.55 MMT मांग में से 3.49 MMT आयात करना पड़ा। वहीं, सोयाबीन तेल की मांग का 60% से अधिक हिस्सा भी आयात से पूरा होता है।
स्वस्थ भारत की ओर भी कदम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद मंत्रालय ने एक राष्ट्रव्यापी अभियान की भी जानकारी दी, जिसमें खाद्य तेल के "सही उपयोग और स्वास्थ्य लाभ" पर ज़ोर दिया गया है। इसका उद्देश्य देश में तेल की खपत को 10% तक कम करना है ताकि फिटनेस को बढ़ावा दिया जा सके।
निष्कर्ष:
हालांकि भारत ने दाल और तेल उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन आयात पर भारी निर्भरता अब भी चुनौती बनी हुई है। सरकार की आगामी योजनाएं यदि प्रभावी साबित होती हैं, तो 2030 तक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।