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जीरे में ठहरी हुई चाल: न भाव में जोश, न खरीदारों में उत्साह!

जीरे का बाजार इन दिनों गहरी सुस्ती के दौर से गुजर रहा है। एक समय तीखी तेजी के लिए मशहूर रहने वाला यह मसाला अब ना सिर्फ भाव के मोर्चे पर थमा हुआ है, बल्कि खरीदारों की दिलचस्पी भी लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। देश की प्रमुख मंडियों से मिली रिपोर्टों के अनुसार, जीरे की कीमतों में फिलहाल कोई दमदार हलचल नहीं दिख रही है, और लेनदेन .....

Business 30 May
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जीरे का बाजार इन दिनों गहरी सुस्ती के दौर से गुजर रहा है। एक समय तीखी तेजी के लिए मशहूर रहने वाला यह मसाला अब ना सिर्फ भाव के मोर्चे पर थमा हुआ है, बल्कि खरीदारों की दिलचस्पी भी लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। देश की प्रमुख मंडियों से मिली रिपोर्टों के अनुसार, जीरे की कीमतों में फिलहाल कोई दमदार हलचल नहीं दिख रही है, और लेनदेन बेहद सीमित दायरे में सिमट गया है।

दिल्ली सहित उत्तर भारत की मंडियों में लेमन क्वालिटी जीरे का थोक भाव ₹25,000 से ₹26,000 प्रति क्विंटल तक दर्ज किया गया, जबकि 98 पार माल ₹27,000 से ₹28,000 प्रति क्विंटल के बीच ही टिका रहा। 40 किलो की बोरी पर नज़र डालें तो थोक बाजार में ₹9,100 से ₹9,175 का भाव चल रहा है। हालांकि इन दरों पर भी खरीदार फिलहाल दूर खड़े नजर आ रहे हैं

रिपोर्टों के अनुसार, मंडियों में आवक सामान्य है लेकिन गुणवत्ता को लेकर असमानता बनी हुई है। कुछ क्षेत्रों से आया माल हल्की क्वालिटी का है, जबकि बढ़िया क्वालिटी वाले माल की आपूर्ति बेहद कम है। इसका सीधा असर खरीदारी पर पड़ा है, क्योंकि व्यापारी स्टॉक उठाने में रुचि नहीं दिखा रहे।

दूसरी ओर, निर्यात कारोबार भी सुस्त है। विदेशी ग्राहकों से कोई खास ऑर्डर नहीं आ रहा है और वैश्विक बाजारों में भी जीरे की मांग ठंडी पड़ी है। इस दोहरी मार ने जीरे के व्यापार को गंभीर ठहराव की स्थिति में ला दिया है। व्यापारी केवल पुराने ग्राहकों के लिए ही सीमित मात्रा में सौदे कर रहे हैं, जबकि ओपन ट्रेड में सौदों की संख्या में गिरावट स्पष्ट देखी जा सकती है

बाजार विश्लेषकों का मानना है कि जब तक मानसून की तस्वीर स्पष्ट नहीं होती और निर्यात में गति नहीं आती, तब तक बाजार में कोई बड़ी तेजी की उम्मीद नहीं की जा सकती। फिलहाल, जीरे का बाजार एक ठहराव की स्थिति में है जहां ना तो भाव में गर्मी है और ना ही मांग में बहार।

मौजूदा परिदृश्य में कारोबारी वर्ग सतर्कता बरत रहा है। भाव में थोड़ी बहुत नरमी के बावजूद खरीदार हाथ खींचे बैठे हैं, जिससे बाजार में एक तरह का ‘वेट एंड वॉच’ मोड बना हुआ है। यदि आने वाले दिनों में मानसून की गति सामान्य रही और अंतरराष्ट्रीय मांग में सुधार हुआ, तभी बाजार में नई जान आने की संभावना बन सकती है।

फिलहाल जीरे का बाजार एक ठंडी चाल में बंधा हुआ है – जहां समय ही इसका असली खेल तय करेगा।

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