देशभर की प्रमुख उत्पादक मंडियों में देसी चने की आवक में भारी गिरावट और ऑस्ट्रेलियाई माल का स्टॉक मुंदड़ा पोर्ट से खत्म होने के बाद अब बाजार में चने की कीमतों में गिरावट की संभावनाएं बेहद सीमित हो गई हैं। लगातार दो दिनों से बनी मंदी के बाद अब बाजार में सुधार के स्पष्ट संकेत दिखने लगे हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में इसमें अच्छी तेजी देखने को मिल सकती है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्यों में इस वर्ष देसी चने का उत्पादन कम रहा है। हालिया गिरावट केवल बाजार में नकदी की कमी और दलहन व्यापार में हुए घाटे की वजह से आई है। उड़द, तुअर और देसी चने के फॉरवर्ड ट्रेड में अनुमान से अधिक नुकसान हुआ है — लगभग ₹30,000 करोड़ का घाटा — क्योंकि 70% खरीदारों ने समय पर माल नहीं उठाया जिससे यह बोझ आयातकों के गले पड़ गया।
अब जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकतर सेटलमेंट पूरे हो चुके हैं, दलहन बाजार में स्थिरता लौटने लगी है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गर्मी की जल्दी शुरुआत ने चने की फसल को नुकसान पहुँचाया है और आपूर्ति में 28-30% की गिरावट दर्ज की गई है। महाराष्ट्र में भी आवक दबाव नहीं बना पा रही है, जबकि मध्य प्रदेश के इंदौर और ग्वालियर लाइन की दाल मिलों ने पहले ही खरीदारी पूरी कर ली है जिससे वहां से सप्लाई भी धीमी हो गई है।
वहीं राजस्थान के बीकानेर, शेखावाटी, तारानगर, नोहर-भादरा और सवाई माधोपुर क्षेत्रों से कुछ हफ्तों से आवक हो रही है, लेकिन मात्रा बहुत सीमित है। मंडियों में छोटे दानों की वजह से प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम है और दाल मिलें मीलिंग के लिए सीमित मात्रा में ही खरीद कर रही हैं।
ऑस्ट्रेलिया चना की आवक भी अब खत्म हो रही है, जिससे राजस्थानी चने में ₹50 की गिरावट के बाद यह ₹5725/5730 प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। वहीं, मुंदड़ा पोर्ट पर भी ऑस्ट्रेलियाई माल का स्टॉक अब लगभग समाप्त हो चुका है।
बाजार विशेषज्ञों की मानें तो घरेलू उत्पादन में आई कमजोरी और अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति घटने से चने में आने वाले दिनों में मजबूती तय है। व्यापारी वर्ग और स्टॉकिस्ट्स को अब एक बार फिर से बाजार में सक्रियता दिखाने का समय है।