दालों के व्यापार में एक अहम स्थान रखने वाली मसूर की बाजार स्थिति इन दिनों भले ही स्थिर और कुछ हद तक सुस्त दिखाई दे रही हो, लेकिन व्यापारियों और विशेषज्ञों की नजरों में इसका भविष्य उज्ज्वल बना हुआ है। मंडियों में मसूर के मौजूदा भाव में कोई विशेष तेजी नहीं देखी जा रही, फिर भी अनेक व्यापारी इसे दीर्घकालीन निवेश और व्यापार के लिहाज से लाभदायक मान रहे हैं।
मौजूदा भाव और बाजार गतिविधि
दिल्ली की प्रमुख मंडियों में मसूर का भाव ₹7,700/कुंटल तक पहुंचा है जबकि कुछ क्षेत्रों में ₹7,400/कुंटल तक का व्यापार हुआ। हालांकि इसमें पिछले सप्ताह के मुकाबले कोई उल्लेखनीय बढ़त नहीं रही, फिर भी इस भाव स्तर को स्थिरता का संकेत माना जा रहा है ।
आयात घटा, मांग बनी हुई
विश्लेषकों के अनुसार आयातित मसूर की आवक में हालिया दिनों में कमी देखी गई है, जिससे घरेलू बाजार में दवाब कम हुआ है। दूसरी ओर, उपभोक्ता मांग और सरकारी खरीद की संभावनाएं इस स्थिरता को समर्थन प्रदान कर रही हैं। जून-जुलाई के मौसम में रबी की फसलें खत्म होती हैं और त्योहारी मांग की शुरुआत होती है, जिससे कीमतों में स्थिर वृद्धि की संभावना जताई जा रही है।
स्टॉक और वितरण पर असर
वर्तमान में गोदामों में स्टॉक की स्थिति संतुलित है। मसूर की खेपों में देरी और सीमित आपूर्ति ने बाजार में नई आवक को नियंत्रित किया है, जिससे भावों में गिरावट की आशंका कम हो गई है। इसके अलावा, केंद्र सरकार की ओर से ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) में मसूर के सीमित स्टॉक के चलते भी थोक व्यापारियों को यह उम्मीद है कि कीमतें जल्द ही रफ्तार पकड़ सकती हैं।
निर्यात और अंतरराष्ट्रीय बाजार की भूमिका
मसूर के अंतरराष्ट्रीय भावों में कोई बड़ी हलचल नहीं है, लेकिन कनाडा व ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख उत्पादक देशों की आगामी फसलों पर मौसम का प्रभाव और वैश्विक मांग का रुझान भारतीय मसूर के लिए अवसर प्रदान कर सकता है। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी आती है, तो भारत में भी इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा।
व्यापारियों को सलाह
इस समय जब बाजार स्थिर है और कीमतें नीची बनी हुई हैं, व्यापारी वर्ग को इस अवसर का लाभ उठाते हुए मसूर में योजनाबद्ध निवेश की सलाह दी जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले महीनों में मांग बढ़ेगी और भाव ₹8,000/कुंटल से ऊपर जा सकते हैं, जिससे व्यापार में लाभ की गुंजाइश और पक्की हो सकती है।
निष्कर्ष:
मसूर में अभी भले ही हलचल कम हो, लेकिन इसकी नींव मजबूत है। मांग, आयात की कमी, अंतरराष्ट्रीय रुझान और घरेलू वितरण पर नियंत्रण – ये सभी मिलकर एक संकेत दे रहे हैं कि "मसूर का व्यापार आगामी महीनों में लाभदायक रहेगा।"