कनाडा के येलो पी (पीली मटर) सेक्टर को 2025 में दो बड़े नीति-झटकों का सामना करना पड़ा है। चीन और भारत, जो इसके सबसे बड़े खरीदार रहे हैं, दोनों ने ही आयात नीतियों में सख्ती कर दी है, जिससे निर्यात और भाव पर सीधा असर पड़ा है।
चीन का पहला और सबसे बड़ा वार
मार्च में चीन ने कनाडा से आयात होने वाली येलो पी, कैनोला ऑयल और कैनोला मील पर 100% टैरिफ लगा दिया। यह कदम कनाडा द्वारा अक्टूबर 2024 में चीनी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर 100% ड्यूटी और स्टील–एल्युमिनियम पर 25% शुल्क लगाने के जवाब में उठाया गया।
इसका असर तुरंत दिखा। वर्ष 2024 में चीन ने कनाडा से लगभग 5 लाख टन येलो पी खरीदी थी (जबकि औसत सालाना आयात करीब 15 लाख टन रहता था), लेकिन 2025/26 में यह घटकर सिर्फ 70,400 टन रह गया। यह मौजूदा सीज़न में कनाडा के कुल पी निर्यात का 8% से भी कम है, जबकि 2024/25 में चीन की हिस्सेदारी 26% (2.63 लाख टन) थी।
भारत का दूसरा झटका
भारत ने भी बाज़ार की मुश्किलें बढ़ा दीं। 2025 के अधिकतर समय में घरेलू कमी और बढ़ते दामों के कारण भारत ने येलो पी पर ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति दी, लेकिन बार-बार एक्सटेंशन और देरी से बाज़ार में अनिश्चितता बनी रही।
मार्च में तय समय पर फैसला न आने के बाद मई अंत तक ड्यूटी फ्री अवधि बढ़ाई गई। हालात सामान्य लग रहे थे, लेकिन अक्टूबर के अंत में अचानक भारत ने 30% आयात शुल्क लगा दिया, जबकि पहले कहा गया था कि छूट मार्च 2026 तक जारी रहेगी।
घरेलू दाम गिरने पर भारतीय दाल उत्पादकों के दबाव में सरकार को यह कदम समय से पहले उठाना पड़ा।
भाव, उत्पादन और स्टॉक की स्थिति
इन दोनों बड़े खरीदारों की मांग घटने से कीमतों पर दबाव बढ़ गया है। 19 दिसंबर तक पश्चिमी कनाडा में येलो पी के भाव C$6.50 से C$7.38 प्रति बुशल (डिलीवर) बताए गए। 2025 में इसका उच्चतम स्तर C$11.40 रहा, जबकि निचला स्तर C$5.94 तक गया।
उत्पादन के मोर्चे पर, स्टैटिस्टिक्स कनाडा ने 2025/26 में ड्राई पी उत्पादन 39.3 लाख टन आंका है, जो पिछले साल के करीब 30 लाख टन से काफी ज्यादा है।
कमज़ोर निर्यात के चलते एग्रीकल्चर एंड एग्री-फूड कनाडा (AAFC) ने दिसंबर रिपोर्ट में कैरीओवर स्टॉक बढ़ाकर 15.7 लाख टन कर दिया है, जो नवंबर में 12 लाख टन और 2024/25 में सिर्फ 4.89 लाख टन था।
निष्कर्ष
चीन के बाहर हो जाने और भारत की संरक्षणवादी नीति के कारण कनाडा के येलो पी बाज़ार में अधिक सप्लाई, बढ़ता स्टॉक और कमजोर निर्यात मांग की स्थिति बन गई है। जब तक नई अंतरराष्ट्रीय मांग नहीं बनती या नीतियों में ढील नहीं मिलती, तब तक कीमतों पर दबाव बना रह सकता है।