सोयाबीन बाजार इस समय भारी दबाव में है। एक ओर NAFED और NCF जैसी सरकारी एजेंसियां लगातार बिकवाली कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर नए सीजन की तेजी से बढ़ती आवक के बीच मांग बेहद सुस्त बनी हुई है। ऊपर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में चल रही नरमी ने बाजार को और नीचे धकेल दिया है, जिससे खुले बाजार में सोयाबीन के भाव टिक नहीं पा रहे हैं। NAFED की नीलामी में कमजोर भाव निकलने का सीधा असर मंडियों पर देखने को मिल रहा है। कीर्ति प्लांट पर सोयाबीन के दाम घटकर 4580 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गए हैं, जबकि विभिन्न मंडियों में फिलहाल 4200-4300 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बोली चल रही है।
मध्य प्रदेश और Maharashtra से लगातार फसल को हुए नुकसान की खबरें आने के बावजूद बाजार में कोई स्थायी तेजी नहीं बन रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Soybean meal के दाम भी कमजोर हैं और इसका असर घरेलू सोयामील व सोयाबीन दोनों पर स्पष्ट दिख रहा है। पिछले एक महीने में महाराष्ट्र में सोयाखल की कीमतें करीब 4000 रुपये प्रति टन तक लुढ़क चुकी हैं, जबकि Madhya Pradesh में सोयाखल फिलहाल 36000-37000 रुपये प्रति टन के बीच बिक रही है। इस बीच United States भी भारत पर सोयाबीन आयात को लेकर दबाव बना रहा है, और यदि भारत ने इस पर सहमति जताई तो घरेलू सोयाबीन की कीमतों पर और अधिक दबाव आ सकता है।
बाजार जानकारों का मानना है कि अक्टूबर में नई फसल की आमद शुरू होने वाली है, इसलिए फिलहाल सोयाबीन में किसी मजबूत तेजी की उम्मीद नहीं है। 4600 रुपये का स्तर टूटने के बाद अब कीर्ति प्लांट के लिए 4400 रुपये प्रति क्विंटल का स्तर तकनीकी रूप से सपोर्ट माना जा रहा है, लेकिन यदि कोई निवेशक व्यापारी इस स्तर पर खरीदारी करना चाहता है तो उसे कम से कम 100-200 रुपये प्रति क्विंटल का जोखिम उठाना होगा। मौजूदा हालात को देखते हुए स्पष्ट है कि सोयाबीन में तेजी का माहौल बनने में समय लगेगा, और जब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोयामील की मजबूती नहीं आती, तब तक घरेलू बाजार में भी स्थिरता आना मुश्किल है। इस बीच थोड़े-बहुत उतार-चढ़ाव की संभावना बनी रहेगी, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हर उछाल पर मुनाफावसूली करना इस समय बेहतर रणनीति होगी।