सरकार छोटे मिलों को 25 टन और बड़ी मिलों को 100 टन तक गेहूं की बिक्री करने की योजना बना रही है, जिसका टेंडर प्रक्रिया पर काम चल रहा है। यदि मिलों की क्षमता के हिसाब से देखा जाए, तो छोटी मिलें प्रति सप्ताह लगभग 100 टन गेहूं मिलिंग कर सकती हैं, जबकि बड़ी आटा मिलें 300 टन तक मिलिंग करने में सक्षम हैं। इस हिसाब से, सरकार द्वारा बेचा जा रहा गेहूं मिलों की क्षमता से कम है, और अगर सरकार गेहूं के भाव को नियंत्रित करना चाहती है, तो उसे आने वाले समय में इस मात्रा को बढ़ाना पड़ेगा।
इस सीजन में गेहूं की फसल के लिए मौसम अनुकूल नहीं रहा है। सर्दी का कम पड़ना फसल की बढ़त में असर डाल रहा है, जबकि गेहूं के उच्च भाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य किसानों को गेहूं की बुवाई को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं का लाभ दे रहे हैं।
हालांकि, अब तक 6 लाख हेक्टेयर की गेहूं बुवाई में बढ़ोतरी की जा सकी है। पिछले वर्ष भारत में 324 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई थी, जबकि इस बार यह 330 से 331 लाख हेक्टेयर के बीच रहने की संभावना है।
अगले साल गेहूं के भाव और अधिक तेज रहने की संभावना है, ऐसे में सरकार को पहले से ही गेहूं की महंगाई पर काबू पाने के लिए ओएमएसएस (Open Market Sale Scheme) के तहत बेचे जाने वाले गेहूं की मात्रा बढ़ानी चाहिए।