देश की प्रमुख कृषि मंडियों में इस सप्ताह बाजार का मिज़ाज कुछ अलग ही रहा। एक ओर जहां गेहूं और चना जैसे बेसिक स्टेपल्स ने व्यापारियों को चिंता में डाला, वहीं मक्का और मूंग ने राहत दी। भावों की दिशा को लेकर बाजार असमंजस में दिखाई दिया – न कोई ज़ोरदार गिरावट, न ही कोई दमदार तेज़ी। यह संकेत देता है कि बाजार अब एक अहम मोड़ पर खड़ा है, जहां से आगे की चाल निर्णायक होगी।
गेहूं: समर्थन मूल्य की तलाश में झूलता बाजार मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की मंडियों में गेहूं की कीमतों में इस सप्ताह लगातार दबाव देखने को मिला। खासतौर पर एमपी मिल क्वालिटी गेहूं ₹2,350 से गिरकर ₹2,325/क्विंटल तक आ गया। दिल्ली में आटा मिलर्स की ओर से उठाव कमजोर रहा, जिससे व्यापार रुका-रुका सा नज़र आया।
खास बात ये रही कि इस गिरावट के बावजूद कोई पैनिक नहीं दिखा, जो संकेत देता है कि बाजार शायद अब ₹2,300 के स्तर को समर्थन मान चुका है। हालांकि सरकारी गोदामों में पुराने स्टॉक की बिक्री चालू रहने से दामों पर दबाव बना रहेगा।
चना (देशी व काबुली): स्टॉक है पर डिमांड नहीं चना के बाजार में इस हफ्ते ‘साइलेंट’ मोड रहा। ना बड़ी तेजी, ना कोई हलचल। बीकानेर, काकीनाडा और नागपुर जैसे प्रमुख हब्स में भाव ₹5,250–₹5,300/100किलो पर स्थिर दिखे।
NAFED की निरंतर बिक्री और मिलर्स की सीमित खरीद के कारण कोई खास हलचल नहीं दिखी। ट्रेडर्स केवल कन्फर्म सौदों पर ध्यान दे रहे हैं, ओपन पोज़िशन से परहेज़ कर रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में काबुली चना की एक्सपोर्ट क्वालिटी को लेकर पूछताछ बढ़ी है, लेकिन अभी ऑर्डर कम हैं।
मक्का: स्थिर मांग ने दिया बाजार को सहारा इस सप्ताह मक्का ने बाजार को राहत दी। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में ₹2,050–₹2,150/क्विंटल के भाव बने रहे। पशु आहार मिलों और स्टार्च इंडस्ट्री की तरफ से लगातार माँग बनी हुई है।
दक्षिण भारत की कंपनियों की खरीद से निचले स्तरों पर सपोर्ट मिला है। किसान भी अभी बड़े पैमाने पर आवक नहीं ला रहे, जिससे भाव स्थिर बने हुए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि जून के पहले सप्ताह में मक्का में कुछ उछाल संभव है।
दालें: मूंग ने दिखाई स्थिरता, उड़द और मसूर रहे सुस्त मूंग में इस सप्ताह महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान की मंडियों में सीमित लेकिन स्थिर आवक देखने को मिली। भावों में स्थिरता रही, जिससे यह संकेत मिला कि नीचे के स्तरों पर व्यापारियों की खरीद रुचि बनी हुई है।
उड़द अब भी कमजोर मांग की गिरफ्त में है। विदेशी माँग कमजोर होने से निर्यात आधारित सौदे थमे हुए हैं। मसूर में हल्की मिलिंग डिमांड से मामूली तेजी दिखी लेकिन सप्लाई पर्याप्त होने के कारण दाम में ठोस सुधार नहीं हो पाया।
अन्य खबरें व व्यापारियों की धारणा
गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों से यह सूचना मिली है कि थोक व्यापारियों में selective buying का ट्रेंड है – यानी सौदे केवल जरूरत और गुणवत्ता के अनुसार किए जा रहे हैं।
एक्सपोर्ट की दिशा में अभी ठहराव है, लेकिन जून-जुलाई से अफ्रीका और मिडिल ईस्ट की पूछताछ की उम्मीद जताई जा रही है। बारिश की शुरुआती सुगबुगाहट ने खरीफ फसलों को लेकर विचार शुरू कर दिए हैं – आने वाले दो सप्ताह मंडियों की चाल के लिए बेहद अहम होंगे। इस सप्ताह का बाजार संकेत करता है कि मंडियों में एक निर्णायक पल के करीब हैं। गेहूं और चना जैसे बड़े प्रोडक्ट्स दबाव में ज़रूर हैं, लेकिन बाजार में कहीं न कहीं बॉटम फॉर्मेशन भी शुरू हो गया है। ऐसे समय में जो व्यापारी सही जानकारी और नेटवर्किंग के साथ काम करेगा, वही अगले उछाल में आगे निकलेगा।