देशभर की मंडियों में इन दिनों मूंगफली के भाव स्थिर दिखाई दे रहे हैं। बीते कुछ सप्ताहों में मौसम में आए बदलाव—विशेषकर मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के प्रमुख मूंगफली उत्पादक क्षेत्रों में हुई बारिश—का सीधा असर मंडियों की गतिविधियों पर पड़ा है। वहीं दूसरी ओर, सरकार के पास पहले से ही पर्याप्त मूंगफली स्टॉक मौजूद होने के कारण निजी खरीदार भी फिलहाल सतर्क मुद्रा में हैं।
बारिश से मंद पड़ी आवक, लिवाली ठंडी
जून महीने की शुरुआत के साथ ही कई राज्यों में मॉनसून की दस्तक से मूंगफली की आवक पर असर पड़ा है। किसानों की प्राथमिकता अब खरीफ फसल की तैयारी की ओर जा रही है, जिसके चलते मंडियों में मूंगफली की नियमित आवक कमजोर हुई है। वहीं, बरसात की अनिश्चितता और माल की नमी की संभावना के चलते व्यापारियों और प्रोसेसरों ने फिलहाल नई खरीद पर रोक लगा रखी है।
व्यापारियों के अनुसार, "बारिश के बाद माल की क्वालिटी को लेकर संशय रहता है। साथ ही खरीदार भी बड़े ऑर्डर से बच रहे हैं, जिससे बाजार में ठहराव है।"
सरकारी स्टॉक ने रोका बाजार में उछाल
नेफेड द्वारा खरीदी गई मूंगफली का बड़ा स्टॉक अभी भी सरकारी गोदामों में उपलब्ध है। इस स्टॉक की खुली बिक्री न होने और सरकारी एजेंसियों द्वारा प्राइवेट ट्रेड में हस्तक्षेप नहीं होने की स्थिति में बाजार में कोई सप्लाई संकट नहीं है। इससे मूंगफली के दामों में कोई खास तेजी नहीं आ पा रही।
अहमदाबाद, राजकोट, जोधपुर, बीकानेर, गोंडल और मंडल जैसे प्रमुख बाजारों में मूंगफली के भाव ₹5350 से ₹5400 प्रति क्विंटल के आसपास स्थिर बने हुए हैं। व्यापारी इसे "सीजनल स्थिरता" की स्थिति बता रहे हैं।
घरेलू और निर्यात मांग भी सुस्त
मूंगफली के प्रमुख उपभोक्ता उद्योग—जैसे तेल मिलें, बिस्किट निर्माताओं और नमकीन इंडस्ट्री की तरफ से भी मांग कमजोर बनी हुई है। इन उद्योगों के पास पहले से मौजूद इन्वेंटरी फिलहाल उनकी आवश्यकता पूरी कर रही है। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी भारत की मूंगफली की मांग सीमित बनी हुई है।
चीन, वियतनाम और मिडिल ईस्ट जैसे बाजारों में भारत की मूंगफली की प्रतिस्पर्धा अर्जेंटीना और अफ्रीका के देशों से बढ़ी है। डॉलर की स्थिरता और वैश्विक मांग में सुस्ती के चलते निर्यात ऑर्डर सीमित रहे हैं।
खरीफ सीजन की बुवाई पर टिकी नजर
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि मूंगफली की कीमतें अब आगामी खरीफ बुवाई के रुझानों पर निर्भर करेंगी। यदि जून के अंत और जुलाई की शुरुआत तक अच्छी बारिश होती है और बुवाई रकबा बढ़ता है, तो बाजार पर और दबाव आ सकता है।
वहीं अगर मानसून कमजोर रहता है या उत्पादन क्षेत्र में किसी प्रकार की क्षति होती है, तो बाजार में कुछ तेजी देखी जा सकती है। इसके अलावा, सरकार द्वारा मौजूदा स्टॉक की बिक्री नीति भी बाजार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।
निष्कर्ष
इस समय मूंगफली बाजार पूर्ण रूप से संतुलन की स्थिति में है। न तो मांग में खास तेजी है, और न ही आपूर्ति में कोई संकट। सरकारी स्टॉक और मौसम दोनों मिलकर बाजार की दिशा तय कर रहे हैं। कारोबारी फिलहाल सावधानी से काम ले रहे हैं और खरीफ बुवाई तथा मानसून की स्थिति पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।