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भारत के ऑयलमील निर्यात में गिरावट: वित्त वर्ष 2024-25 की स्थिति

रेपसीड और कैस्टरसीड मील की घटती मांग के कारण भारत के ऑयलमील निर्यात में गिरावट आई है, लेकिन सोयाबीन मील के बढ़ते निर्यात ने उम्मीद की किरण जगाई है। उद्योग को बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बाजार की अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है। निर्यात नीतियों में बदलाव और नए बाजारों पर ध्यान देने से इस क्षेत्र को स्थिरता मिल सकती है।

Opinion 19 Dec 2024
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वित्त वर्ष 2024-25 के पहले आठ महीनों में भारत के ऑयलमील निर्यात में 7.15% की गिरावट दर्ज की गई। इस अवधि में निर्यात मात्रा 2023-24 के समान समय के 29.64 लाख टन से घटकर 27.51 लाख टन रह गई।

निर्यात में गिरावट के प्रमुख कारण

मुख्य रूप से रेपसीड मील और कैस्टरसीड मील की वैश्विक मांग में कमी इस गिरावट का कारण बनी है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता ने इसे प्रमुख वजह बताया। अप्रैल-नवंबर 2024-25 के दौरान:
रेपसीड मील का निर्यात: 16.07 लाख टन से घटकर 13.21 लाख टन।
कैस्टरसीड मील का निर्यात: 2.54 लाख टन से घटकर 1.97 लाख टन।

सोयाबीन मील में वृद्धि

सोयाबीन मील निर्यात के मोर्चे पर सकारात्मकता रही। 2024-25 के पहले आठ महीनों में इसका निर्यात 9.37 लाख टन से बढ़कर 12.06 लाख टन हो गया। यह वृद्धि मुख्य रूप से यूएई, ईरान, और फ्रांस जैसे बाजारों में उच्च मांग के चलते हुई। हालांकि, वैश्विक बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा ने भारतीय उत्पादकों के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

प्रमुख बाजारों की अनिश्चितता

बांग्लादेश, जो रेपसीड मील के लिए भारत का एक बड़ा निर्यात बाजार है, वहां मांग में कमी आई है। इससे भारतीय उत्पादकों पर दबाव बढ़ा है।

निर्यात को पुनर्जीवित करने के प्रयास

इन चुनौतियों के समाधान के लिए SEA सरकार से तेल रहित चावल की भूसी के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मांग कर रहा है। इस कदम से आने वाले महीनों में निर्यात में सुधार की संभावना है।

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