सरसों तेल और खली के पर्याप्त स्टॉक के चलते बाजार में दबाव बना हुआ है। पुराने सौदों में उठाव धीमा होने के कारण नई मांग भी कमजोर बनी हुई है। वर्तमान में सरसों तेल पाम तेल से सस्ता है, लेकिन तेल और खली की मांग कम होने से सरसों में बड़ी तेजी की उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही।
निर्यात के मोर्चे पर, भारत से सरसों मील के व्यापार को DDGS (डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स) की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दक्षिण कोरिया, जो भारत से सरसों मील का बड़ा खरीदार है, ने इस वर्ष सस्ता विकल्प होने के कारण सरसों मील का आयात 25% तक घटा दिया है। जनवरी से अक्टूबर 2024 तक कोरिया ने केवल 3.41 लाख टन सरसों मील आयात किया, जबकि गत वर्ष यह आंकड़ा 5.19 लाख टन था। नवंबर-दिसंबर में केवल एक वेसल के जरिए 35,000 टन मील भेजा जाना बाकी है।
यह स्थिति स्पष्ट संकेत देती है कि कोरिया में सरसों मील की जगह DDGS तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इस बदलाव के चलते भारतीय किसानों को सरसों और सोयाबीन जैसी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे किसान और व्यापार दोनों प्रभावित हो रहे हैं।