जून 2025 में भारत की खाद्य महंगाई दर फरवरी 2019 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गई है, जो उपभोक्ताओं और नीति निर्माताओं दोनों के लिए राहत की खबर है। महंगाई में इस गिरावट के पीछे कई अहम कारण हैं, जिनमें प्रमुख हैं गेहूं, दाल, तेल और मसालों की कीमतों में आई नरमी।
आंकड़ों पर एक नजर:
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गेहूं की महंगाई दर जून में घटकर 5.44% रह गई, जो मई में 6.43% थी।
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सरसों तेल और रिफाइंड तेल की महंगाई दर क्रमशः 18.28% और 23.55% रही, हालांकि यह वृद्धि मुख्यतः वैश्विक बाजार में तेलों की कीमतों के कारण हुई है।
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दालों की महंगाई लगातार पांचवें महीने घटी है। जून में इनकी दर 11.76% कम रही।
अगस्त 2024 में यह दर 113% तक पहुंच गई थी, यानी दालें अब पहले की तुलना में काफी सस्ती हुई हैं।
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तुवर दाल की कीमतों में 25.11% की गिरावट देखी गई है।
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मसाले भी महंगे नहीं रहे – जून में महंगाई दर 3.03% घटी, जबकि जीरा जैसे मसाले में 16% की कीमत गिरावट दर्ज हुई।
इस गिरती महंगाई के बीच एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है – क्या अब गेहूं और दालों पर लगी निर्यात/स्टॉक सीमाओं जैसी बंदिशों को हटाया जाना चाहिए?
हाल ही में दिल्ली ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन (DGMA) के वाइस प्रेसिडेंट गौरव गुप्ता ने एक सार्वजनिक पत्र के माध्यम से सरकार से मांग की है कि अब समय आ गया है कि इन प्रतिबंधों की समीक्षा की जाए। उनका कहना है कि यदि घरेलू महंगाई नियंत्रण में है, तो व्यापारियों और किसानों को राहत दी जानी चाहिए और बाजार को सामान्य रूप से कार्य करने की अनुमति मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष:
खाद्य महंगाई में सुधार एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इससे जुड़े नीतिगत फैसलों पर संतुलित दृष्टिकोण जरूरी है। एक ओर उपभोक्ताओं को राहत मिल रही है, वहीं दूसरी ओर व्यापारियों और किसानों को भी स्थिर नीति की आवश्यकता है। अब देखना होगा कि सरकार आने वाले हफ्तों में इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है।