भारत में चालू खरीफ सीज़न 2025 के दौरान सोयाबीन की बुवाई में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया गया है। यह अनुमान देश में तेल बीज उद्योग की शीर्ष संस्था, The Soyabean Processors Association of India (SOPA) ने 30 जून को जारी अपनी रिपोर्ट में व्यक्त किया। SOPA के अनुसार, सोयाबीन की कीमतों में लगातार दो वर्षों से गिरावट के चलते किसानों को संतोषजनक लाभ नहीं मिला, जिस कारण बड़ी संख्या में किसान इस बार वैकल्पिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
SOPA के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक ने बताया कि देश के कई हिस्सों में किसानों ने सोयाबीन के स्थान पर मक्का, अरहर (तुअर या रेड ग्राम), और कपास जैसे फसलों की बुवाई को प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा, “सोयाबीन की बुवाई में कुल गिरावट लगभग 5 प्रतिशत हो सकती है, लेकिन सटीक आंकड़ा तभी स्पष्ट होगा जब बुवाई पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।”
पिछले वर्ष देश में सोयाबीन की बुवाई कुल 117.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई थी। SOPA का मानना है कि इस वर्ष यह घटकर लगभग 112 लाख हेक्टेयर के आसपास रह सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में बुवाई की प्रक्रिया अभी जारी है। हालांकि, 30 जून 2025 तक 42.98 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई पूरी हो चुकी है।
फसल पैटर्न में इस बदलाव के पीछे कई आर्थिक और व्यावसायिक कारण बताए गए हैं। मक्का और अरहर जैसी फसलों ने हाल के वर्षों में बेहतर बाजार मूल्य और अपेक्षाकृत स्थिर रिटर्न दिए हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ क्षेत्रों में कपास की कीमतों में संभावित तेजी की उम्मीद ने भी किसानों को उस दिशा में आकर्षित किया है। SOPA का मानना है कि यह बदलाव आंशिक रूप से बाजार की प्रवृत्ति के आधार पर हुआ है और इसमें सरकारी नीति या मौसम की भूमिका भी परोक्ष रूप से रही हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बुवाई में SOPA का अनुमानित 5 प्रतिशत का यह घाटा वास्तव में होता है, तो इससे भारत के तेल उद्योग, पशु आहार निर्माता, और रिफाइनिंग सेक्टर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। घरेलू उत्पादन में कमी से भारत को सोया तेल के आयात पर अधिक निर्भर होना पड़ सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब भारत में खरीफ बुवाई की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो रही है। मानसून की शुरुआत के बाद अब किसान तेजी से निर्णय ले रहे हैं कि किन फसलों में उन्हें बेहतर आर्थिक लाभ की संभावना है। SOPA की रिपोर्ट फील्ड से जुटाए गए वास्तविक आंकड़ों और किसानों की प्रतिक्रियाओं पर आधारित है, और इसमें किसी भी प्रकार का अनुमान अनावश्यक नहीं जोड़ा गया है।
अंततः, यह स्थिति सोयाबीन व्यापार से जुड़े सभी हितधारकों — किसानों, व्यापारियों, तेल मिलों और निर्यातकों — के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हो सकती है। SOPA के अनुसार, बुवाई के पूर्ण आंकड़े जुलाई के अंत तक सामने आ जाएंगे, जिससे भारत के खाद्य तेल बाज़ार की दिशा तय करने में मदद मिलेगी।