सरकार के हालिया फैसलों ने देश के अन्नदाताओं की चिंता बढ़ा दी है। पीली मटर (Yellow Peas) के ड्यूटी-फ्री आयात को 31 मार्च 2026 तक बढ़ाने से देश के दाल उत्पादक किसानों पर सीधा असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वही गलती है जो पहले तेल क्षेत्र में की गई थी – और अब दोहराई जा रही है।
सरकार ने न केवल पीली मटर पर आयात शुल्क शून्य किया है
, बल्कि खाद्य तेलों पर भी कस्टम ड्यूटी 20% से घटाकर 10% कर दी है। इसका नतीजा यह हुआ है कि देश की 65% वनस्पति तेल की ज़रूरतें अब विदेशी आयात से पूरी हो रही हैं – जिससे देशी तेल उद्योग लगभग पंगु हो गया है।
अब यही खतरा दाल क्षेत्र पर मंडरा रहा है। पीली मटर का आयात मूल्य देशी दालों के MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से आधा है। इससे भारतीय किसानों की दाल मंडियों में प्रतिस्पर्धा असंभव हो जाएगी और उनकी फसलें घाटे का सौदा बन जाएंगी।
याद दिला दें, 1990 के दशक तक जब खाद्य तेल आयात नियंत्रित था, तब देश 70% तेल उत्पादन खुद करता था और केवल 30% आयात होता था – वो भी सरकारी एजेंसियों द्वारा। आज का परिदृश्य पूरी तरह उलट चुका है।
अगर अब भी नीति नहीं बदली गई, तो पीली मटर की भरमार से न केवल किसानों की आय में भारी गिरावट आएगी, बल्कि दाल क्षेत्र भी विदेशी आपूर्ति पर निर्भर होता चला जाएगा – और यह सीधा असर डालेगा भारत की खाद्य सुरक्षा पर।
सरकार को चाहिए कि वह आयात नीति में संतुलन बनाए और दाल उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा करे – वरना तेल के बाद दाल क्षेत्र भी विदेशी बाजारों का मोहताज बन जाएगा।