मिस्र की गेहूं आयात आवश्यकता विपणन वर्ष 2025/26 में 1.6% बढ़कर 12.7 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुंचने का अनुमान है। यह वृद्धि मुख्य रूप से आबादी में लगातार हो रही बढ़ोतरी और घरेलू खपत में इजाफे से प्रेरित है। मिस्र की आबादी वर्तमान में 108 मिलियन से अधिक है और 2030 तक 124 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, जिसके चलते यह दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक बना हुआ है।
सरकार ने स्थानीय किसानों को गेहूं की खेती और बिक्री के लिए प्रोत्साहित करने हेतु 277 से 290 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की गारंटीशुदा कीमतें तय की हैं। इसके चलते इस वर्ष लगभग 4 एमएमटी गेहूं की स्थानीय खरीद हो चुकी है। हालांकि, घरेलू उत्पादन कुल आवश्यकता का केवल 50-55% ही पूरा करता है और बड़ी सब्सिडी योजना के कारण आयात पर निर्भरता बनी रहती है। कुल खपत 2025/26 में 20.3 एमएमटी तक पहुंचने का अनुमान है।
निजी क्षेत्र भी हाल के वर्षों में आयात गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय हुआ है, जिससे प्रीमियम बेकरी और क्षेत्रीय बाजारों के लिए आटा आपूर्ति संभव हो सकी है। हालांकि, सरकार के कड़े निर्यात नियमों के चलते गेहूं के आटे का निर्यात 1.3 एमएमटी से घटकर 1 एमएमटी रहने का अनुमान है।
मकई (कॉर्न) के मामले में 2025/26 में उत्पादन लगभग 7.6% घटकर 6.7 एमएमटी रहने का अनुमान है। अत्यधिक गर्मी और कीट प्रकोप (खासकर फॉल आर्मीवर्म) से पैदावार प्रभावित हुई है। वहीं खपत 4.4% बढ़कर 16.5 एमएमटी रहने का अनुमान है, जिसमें पोल्ट्री सेक्टर सबसे बड़ा उपभोक्ता है। घरेलू उत्पादन आवश्यकता का 30% से भी कम पूरा करता है, इसलिए मकई आयात 9% बढ़कर 9.5 एमएमटी तक पहुंच सकता है।
चावल का उत्पादन 2025/26 में 7.7% बढ़कर 4.2 एमएमटी रहने की संभावना है, जो पिछले वर्ष के 3.9 एमएमटी से अधिक है। उत्पादन लागत अन्य खरीफ फसलों (जैसे मकई व कपास) की तुलना में कम होने के कारण किसानों ने सरकार द्वारा तय की गई खेती सीमा से अधिक बोआई की है। खपत 4 एमएमटी पर स्थिर रहने और 1.4 लाख टन आयात की जरूरत का अनुमान है।
➡️ भारतीय व्यापारियों के लिए संकेत: मिस्र में लगातार बढ़ती खपत और आयात निर्भरता भारत जैसे निर्यातकों के लिए अवसर प्रस्तुत कर सकती है, खासकर गेहूं, मकई और चावल जैसे अनाजों में। बदलते नियमों और सरकारी नीतियों पर नजर रखना व्यापारिक दृष्टि से अहम रहेगा।