स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक ताज़ा रिपोर्ट ने भारतीय चावल व्यापार के लिए गंभीर चिंता जताई है। अध्ययन के अनुसार, 1980–2015 के दौरान बाढ़ के कारण वैश्विक धान उत्पादन में हर साल लगभग 4.3% (1.8 करोड़ टन) की कमी हुई। जलवायु परिवर्तन के चलते ऐसी जलमग्न स्थितियाँ अब भारत के प्रमुख धान क्षेत्रों में और बढ़ रही हैं।
भारत के साबरमती बेसिन (गुजरात–राजस्थान) और पश्चिम बंगाल को विशेष रूप से उच्च जोखिम वाला बताया गया है, जहाँ लगातार एक सप्ताह की बाढ़ धान की पूरी फसल खत्म कर सकती है। भविष्य में सबसे तीव्र सप्ताह की बारिश 13% तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे बाजार में सप्लाई बाधित होने और कीमतों में उतार–चढ़ाव की संभावना बढ़ सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले सीज़न्स में फसल नुकसान, देरी से कटाई और सप्लाई गैप भारतीय ब्रोकर्स, ट्रेडर्स और मिलर्स के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
संभावित समाधान—बाढ़-सहिष्णु धान बीजों का इस्तेमाल, फसल विविधीकरण और बेहतर जल प्रबंधन—धीरे-धीरे अपनाए जा रहे हैं, लेकिन असर तत्काल नहीं होगा।
संक्षेप में:
बढ़ती बाढ़ें अब धान किसानों ही नहीं, बल्कि पूरे राइस ट्रेड वैल्यू चेन के लिए जोखिम हैं। आगामी महीनों में भारतीय बाजार में सप्लाई-साइड अनिश्चितता और प्राइस वोलैटिलिटी बढ़ सकती है, इसलिए धान कारोबारी जोखिम प्रबंधन और स्टॉक प्लानिंग पर विशेष ध्यान दें।